ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा /नर्गिसीयत के मरीज़ों से लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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रविवार, 6 दिसंबर 2009

नर्गिसीयत के मरीज़ों से भरी है दुनिया

नर्गिसीयत के मरीज़ों से भरी है दुनिया ।
अस्पतालों में सिमटने सी लगी है दुनिया॥

नक्सली क़ूवतें सर्गर्मे-अमल हैं कब से,
सुनते हैं ज़ेरे-ज़मीं फैल रही है दुनिया ॥

क्यों है हमसाया मुमालिक में सियासी बुहरान,
किस लिए उन पे बहोत तंग हुई है दुनिया॥

दिल तो कहता है के इस दुनिय को लाज़िम है फ़ना,
दीदए-फ़िक्र में लेकिन अबदी है दुनिया ॥

आख़िरत के सभी सामान मुहैया कर लो,
एक बाज़ार सी हर वक़्त सजी है दुनिया ॥

हिम्मतो-अज़्मो-अमल,ज़ौक़े-जुनूं, मक़्सदे-हक़,
हैं अगर साथ तो क़दमों में झुकी है दुनिया ॥
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नर्गिसीयत = अपने आप से प्यार करना, सरगर्मे-अमल = सक्रिय,ज़ेरे-ज़मीं = धरती के नीचे,हमसाया मुमालिक=पड़ोसी देशों, सियासी बुहरान = राजनीतिक संघर्ष, फ़ना= नश्वरता,दीदए-फ़िक्र=चिन्तन की आँखें, अबदी = स्थायी/ अनश्वर,आख़िरत = परलोक, मुहैया = एकत्र, हिम्मतो-अज़्मो-अमल = साहस,संकल्प एवं व्यावहारिकता, ज़ौक़े-जुनूं = दीवानगी से भ्ररपूर लगन,मक़्सदे-हक़ = अभीष्ट सत्य,