सुना है नरग़ए-आदा है रेगज़ारों में ।
ये कौन यक्कओ-तन्हा है रेगज़ारों में॥
छुपा है सहरानवर्दी में एक आलमे-इश्क़,
बरहना ख़ुश्बुए-लैला है रेगज़ारों में ॥
सुकून-बख़्श नहीं घर के ये दरो-सीवार,
हमार ज़ह्न भटकता है रेगज़ारों में ॥
वो फ़तहयाब हुआ फिर भी हो गया रुस्वा,
वो सर कटा के भी ज़िन्दा है रेगज़ारों में॥
हयात मौत का लुक़्मा बने तो कैसे बने,
कोई तो है जो मसीहा है रेगज़ारों में ॥
समन्दरों का सफ़र कर रहा है मुद्दत से,
वो इन्क़लाब जो प्यासा है रेगज़ारों में ॥
वो एक दरया है क्या जाने रेगे-गर्म है क्या,
उसे तो होके निकलना है रेगज़ारों में ॥
दरख़्त ऐसा है जिसकी जड़ें फ़लक पर हैं,
मगर वो फूलता फलता है रेगज़ारों में ॥
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