यहाँ शायद मुकम्मल कुछ नहीं है।
मसाएल हैं, मगर हल कुछ नहीं है॥
मैँ इन्साँ अब कहाँ, बुत बन चुका हूं,
मेरे सीने मेँ हलचल कुछ नहीँ है॥
वो जिन बोतल के बाहर आ चुका है,
के अब ख़ाली है बोतल, कुछ नहीं है॥
हमारी ही नयी शक्लें हैं ये सब,
घटा, तूफ़ान, बादल कुछ नहीं है॥
कभी समझो के इस कारे-जहां में,
सभी कुछ आज है, कल कुछ नहीं है॥
हमी कमज़ोरियों में धँस रहे हैं,
हक़ीक़त में ये दलदल कुछ नहीं है॥
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