दुमदार सितारों की है यलग़ार ज़मीं पर्।
कुछ बर्फ़ की गेंदें हैं शररबार ज़मीं पर॥
रहते थे फ़रिश्तों में तो अच्छे थे बहोत हम,
ख़ालिक़ ने उतारा हमें बेकार ज़मीं पर्॥
तस्बीह के दानों की तरह बिखरे हैं तारे,
टूटी हुई मुद्दत से है ज़ुन्नार ज़मीं पर्॥
इन्साँ के लिए आये क़वानीने-ख़ुदावन्द,
ज़ालिम के ख़िलाफ़ आयी है तलवार ज़मीं पर्॥
ख़ुशहाली पे नाज़ाँ हैं जहाँ साहिबे-दौलत,
रहते हैं वहीं मुफ़्लिसो-नादार ज़मीं पर्॥
ख़ूँरेज़ियाँ करता है बशर फिर भी है ज़िन्दा,
आज़ाद हैं फ़िकरों से गुनहगार ज़मीं पर्॥
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