ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / ज़िन्दगी ने इस तरह लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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शनिवार, 8 अगस्त 2009

ज़िन्दगी ने इस तरह छेड़ा है साज़े-रोज़ो-शब ।

ज़िन्दगी ने इस तरह छेड़ा है साज़े-रोज़ो-शब ।
कारे-दुनिया ने मिटया इम्तियाज़े-रोज़ो-शब ।।

हो गया अब गाँव के तालाब का पानी भी ख़ुश्क,
झुन्ड चिड़ियों का बताये क्या फ़राज़े-रोज़ो-शब ।।

कश्तियाँ ग़र्क़ाब हो जाने का सदमा कम नहीं ,
हो गया ग़र्क़ाब क्यों सोज़ो-गुदाज़े-रोज़ो-शब ।।

रात दिन यकसाँ गुज़रती हो जब अपनी ज़िन्दगी,
कोई समझाये मुझे क्या है जवाज़े-रोज़ो-शब ।।

बेसुरे नग़्मों को सुनते-सुनते जी उकता गया,
काश कोई तोड़ देता बढ़ के साज़े-रोज़ो-शब ।।
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