ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / जब भी कुछ फ़ुर्तसत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

जब भी कुछ फ़ुर्तसत होती है

जब भी कुछ फ़ुर्तसत होती है।
तनहाई नेमत होती है।
शायर कोई और है मुझ में,
पर मेरी शुहरत होती है॥
उर्दू के शेरों में बेहद,
तरसीली क़ूवत होती है॥
लफ़्ज़ों के जादू में पिनहाँ,
मानी की ताक़त होती है॥
वादा-ख़िलाफ़ी करते क्यों हो,
दोस्ती बे-हुरमत होती है॥
वो अदना होता ही नहीं है,
जिसकी कुछ इज़्ज़त होती है॥
माँ के आँसू गिरने मत दो,
बून्द बून्द जन्नत होती है॥
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