गिरफ़्तारे-बला हरगिज़ नहीं हूं ।
मैं घबराया हुआ हरगिज़ नहीं हूं॥
बिछा दो राह में कितने भी काँटे,
मैं वापस लौटता हरगिज़ नहीं हूं॥
निकल जाऊंगा मैं इन ज़ुल्मतों से,
के मैं इनमें घिरा हरगिज़ नहीं हूं॥
पता है ख़ूब मुझको साज़िशों का,
मैं लुक़्मा वक़्त का हरगिज़ नहीं हूं॥
हरेक दिल की दुआ है ज़ात मेरी,
किसी की बददुआ हरगिज़ नहीं हूं॥
*******