ग़ज़ल / ज़ैदी जाफ़र रज़ा / ख़ून के रिश्तों में अब लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

ख़ून के रिश्तों में अब कोई कशिश कैसे मिले

ख़ून के रिश्तों में अब कोई कशिश कैसे मिले।

लोग हैं सर्द बहोत दिल में तपिश कैसे मिले॥

दुश्मनी दौरे-सियासत की दिखावा है फ़क़त,

मस्लेहत पेशे-नज़र हो तो ख़लिश कैसे मिले॥

बर्क़-रफ़्तार शबो-रोज़ हैं, ठहराव कहाँ,

वज़अदारी-ओ-मुहब्बत की रविश कैसे मिले॥

किस ख़ता पर हैं लगाये गये उसपर इल्ज़ाम,

राज़ खुलता नहीं रूदादे-दबिश कैसे मिले ॥

साहबे-रुश्दो-कमालात कहाँ से लायें,

मकतबे-दानिशो-इरफ़ानो-अरिश कैसे मिले॥

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