ख़ून के रिश्तों में अब कोई कशिश कैसे मिले।
लोग हैं सर्द बहोत दिल में तपिश कैसे मिले॥
दुश्मनी दौरे-सियासत की दिखावा है फ़क़त,
मस्लेहत पेशे-नज़र हो तो ख़लिश कैसे मिले॥
बर्क़-रफ़्तार शबो-रोज़ हैं, ठहराव कहाँ,
वज़अदारी-ओ-मुहब्बत की रविश कैसे मिले॥
किस ख़ता पर हैं लगाये गये उसपर इल्ज़ाम,
राज़ खुलता नहीं रूदादे-दबिश कैसे मिले ॥
साहबे-रुश्दो-कमालात कहाँ से लायें,
मकतबे-दानिशो-इरफ़ानो-अरिश कैसे मिले॥
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