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गुरुवार, 13 अगस्त 2009

असासा ख़्वाबों का मह्फ़ूज़ कर नहीं पाया ।

असासा ख़्वाबों का मह्फ़ूज़ कर नहीं पाया ।
के दिल ने अपना कोई हमसफ़र नहीं पाया॥

हमारी आँखों में ऐसे चेराग़ रौशन थे,
अंधेरा राह में आकर ठहर नहीं पाया ॥

सुकून के वो हसीं लम्हे फिर नहीं लौटे,
कहाँ कहाँ उन्हें ढ़ूंढ़ा मगर नहीं पाया ॥

न जाने कब से है आमादए-सफ़र दुनिया,
कोई भी राह से तेरी गुज़र नहीं पाया ॥

अजब सेहर था तेरी ख़ुश-जमाल आँखों का,
हुआ ज़माना वो जादू उतर नहीं पाया ॥

क़दम-क़दम पे हमें राहज़न ही मिलते रहे,
किसी को हमने कभी राहबर नहीं पाया॥
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