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शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2008

मुझको शिकस्ते-दिल का मज़ा याद आ गया./ खुमार बाराह्बंकवी

मुझको शिकस्ते-दिल का मज़ा याद आ गया.
तुम क्यों उदास हो तुम्हें क्या याद आ गया.
कहने को ज़िन्दगी थी बहोत मुख्तसर मगर,
कुछ यूँ बसर हुई कि खुदा याद आ गया.
वाइज़ सलाम लेके चला मैकदे को मैं,
फिर्दौसे-गुमशुदा का पता याद आ गया.
बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई,
एक बेवफा का अहदे-वफ़ा याद आ गया.
मांगेंगे अब दुआ कि उसे भूल जाएँ हम,
लेकिन जो वो बवक़्ते-दुआ याद आ गया.
हैरत है तुमको देख के मस्जिद में ऐ खुमार,
क्या बात हो गई जो खुदा याद आ गया.
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