उम्र के इस मोड़ पर तुझ से तमन्ना क्या करें।
सामने आँखों के हो तू और बस देखा करें॥
परवरिश करते रहे अपनों की हासिल क्या हुआ,
अब यही बेहतर है थोड़े जानवर पालाकरें॥
ऐन मुम्किन है के हम हो जायें ख़ुद भी मह्वे-रक़्स,
बाँसुरी रख कर लबों पर सुर नये पैदा करें॥
वैसे तो शायद कभी छू भी न पाओ तुम हमें,
हाँ उड़ा सकते हो गर्दन जब भी हम सज्दा करें॥
मुद्दतों से है ख़लाओं में हमारी बूदो-बाश,
छोड़ कर उसको ज़मीं पर किस लिए उतरा करें॥
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