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शुक्रवार, 26 सितंबर 2008

ख्वाब बहोत देखे थे हमने

ख्वाब बहोत देखे थे, हमने, तुमने, सबने।
फिर भी दुख झेले थे, हमने, तुमने, सबने।
खेतों में उग आई हैं साँपों की फसलें,
बीज ये कब बोये थे, हमने, तुमने, सबने।
क्यों नापैद हुए जाते हैं अम्न के गोशे,
प्यार जहाँ बांटे थे, हमने, तुमने, सबने।
आहिस्ता-आहिस्ता ख़ाक हुए सब कैसे,
जो रिश्ते जोड़े थे, हमने, तुमने, सबने।
तहरीरों से वो अफ़साने गायब क्यों हैं,
जो सौ बार पढ़े थे, हमने, तुमने, सबने।
मिटटी के खुशरंग घरौंदे दीवाली पर,
क्यों तामीर किये थे, हमने, तुमने, सबने।
पहले दहशतगर्द नहीं होते थे शायद,
कब ये लफ़्ज़ सुने थे, हमने, तुमने, सबने।

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