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रविवार, 24 अगस्त 2008

यह जानना अभी शेष है / शैलेश ज़ैदी

'भारत माता की जय' और 'जय श्रीराम' !
कितने पवित्र हैं यह शब्द और इनकी ध्वनियाँ !

किसी छोटे से जलाशय में
जिसमें गन्दगी भरी हो
यदि इन शब्दों को डुबो दिया जाय
तो यह कुरूप तो हो सकते हैं
पवित्र फिर भी रहेंगे.

कलाकृतियाँ चाहे हुसैन की हों
या आपकी या मेरी
उन्हें परखने के लिए दृष्टि चाहिए
और यह दृष्टि केसरिया दिमागों में नहीं है.
श्रीराम और भारत माता जैसे पवित्र शब्द भी
इन दिमागों की संकीर्ण परिधियों में
सिकुड़ गए हैं
और इनसे मुक्त होकर
अपनी सुगंध फैलाने के लिए छटपटा रहे हैं.

कलाकृतियाँ नष्ट करने से
सांस्कृतिक धरोहर फालिज-ग्रस्त हो सकते हैं
और जय श्री राम का सांस्कृतिक धरोहर भी
अपना अर्थ खो सकता है.
केसरिया दिमागों को
यह जानना अभी शेष है.
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[नई दिल्ली में एम्. ऍफ़. हुसैन के पक्ष में लगाई गई एक प्रदर्शनी में 'जय श्रीराम' और 'भारत माता की जय' का नारा लगाते हुए एक समूह ने वितंडावाद फैलाया और कई पेंटिंग्स नष्ट कर दीं .इस समाचार ने जन्म दिया है 'यह जानना अभी शेष है' कविता को. शैलेश ज़ैदी ]