शनिवार, 25 जुलाई 2009
असासा ख़्वाबों का मह्फ़ूज़ कर नहीं पाया ।
बुधवार, 22 जुलाई 2009
मैं बारिशों से भरे बादलों को देखता हूं
हवाएं हैं गरीबाँ चाक हर जानिब उदासी है।
मंगलवार, 21 जुलाई 2009
मकान कितने बदलता रहा मैं घर न मिला।
जिस्म के ज़िन्दाँ में उमरें क़ैद कर पाया है कौन ।
रविवार, 19 जुलाई 2009
दोस्तों से राब्ता रखना बहोत मुश्किल हुआ।
शनिवार, 18 जुलाई 2009
दिल खिंच रहा है फिर उसी तस्वीर की तरफ़ ।
शनिवार, 4 जुलाई 2009
जुनूँ-खेजी में दीवानों से कुछ ऐसा भी होता है.
जुनूँ-खेजी में दीवानों से कुछ ऐसा भी होता है.
के जिसके फैज़ से क़ौमों का सर ऊंचा भी होता है.
सफ़ीने की मदद को खुद हवाएं चल के आती हैं,
सहूलत के लिए ठहरा हुआ दरिया भी होता है.
मेरी राहों में लुत्फे - नकहते - बादे-बहारी है,
मेरे सर पर महो-खुर्शीद का साया भी होता है.
बजाहिर वो मेरी जानिब से बे-परवा सा लगता है,
मगर एहसास उसको मेरे ज़खमों का भी होता है.
ये मज़्लूमी की चादर मैं जतन से ओढे रहता हूँ,
के लग्जिश से मेरा महबूब कुछ रुसवा भी होता है.
उसी का है करम इस हाल में भी सुर्ख-रू हूँ मैं,
बरतने में वो अक्सर हौसला अफजा भी होता है.
नज़र के सामने रहता है वो कितने हिजाबों में,
मगर ख़्वाबों में जब आता है बे-पर्दा भी होता है.
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सोमवार, 29 जून 2009
ले जाता है ऐ दिल मुझे नाहक़ तू कहाँ और.
ले जाता है ऐ दिल मुझे नाहक़ तू कहाँ और.
गोकुल के सिवा कोई नहीं जाये-अमां और.
जमुना का ये तट और ये मुरली के तराने,
जी चाता है उम्र गुज़र जाये यहाँ और.
ये इश्क के इज़हार की आज़ादी कहाँ है
इस खित्ते को शायद हैं मिले अर्ज़ो-समाँ और.
हर सम्त कदम्बों के दरख्तों के हैं साये,
मुमकिन ही नहीं होती हो खुश्बूए-जिनाँ और.
सच्चाई के अल्फाज़ हैं दोनों के लबों पर
राधा का बयाँ और है कान्हा का बयाँ और.
इस दिल में अगर श्याम मकीं हो नहीं सकते,
हम फिर से बना लेंगे नया एक मकाँ और.
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रविवार, 28 जून 2009
आमिना के लाल का सौन्दर्य मन को भा गया.
आमिना के लाल का सौन्दर्य मन को भा गया.
रूप का लावन्य मानस के क्षितिज पर छा गया.
उसकी लीलाएं अनोखी थीं सभी को था पता,
उसकी छवियों पर निछावर सारा जग होता गया.
हम तिमिर में थे, उजालों में कुछ आकर्षण न था,
रोशनी का अर्थ आकर वो हमें समझा गया.
उसके आने की मिली जब सूचना कहते हैं लोग,
आग फ़ारस की बुझी सारा महल थर्रा गया.
शत्रुओं को उसने दो पल में चमत्कृत कर दिया,
चाँद के स्पष्ट दो टुकड़े हुए देखा गया.
गोरे काले सब बराबर हैं ये जब उसने कहा,
शोषकों के दंभ का प्रासाद ही भहरा गया.
उसकी वाणी से परिष्कृत हो गए मन के कलश,
उसकी शिक्षा का हरित-सागर हमें नहला गया.
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