आमिना के लाल का सौन्दर्य मन को भा गया.
रूप का लावन्य मानस के क्षितिज पर छा गया.
उसकी लीलाएं अनोखी थीं सभी को था पता,
उसकी छवियों पर निछावर सारा जग होता गया.
हम तिमिर में थे, उजालों में कुछ आकर्षण न था,
रोशनी का अर्थ आकर वो हमें समझा गया.
उसके आने की मिली जब सूचना कहते हैं लोग,
आग फ़ारस की बुझी सारा महल थर्रा गया.
शत्रुओं को उसने दो पल में चमत्कृत कर दिया,
चाँद के स्पष्ट दो टुकड़े हुए देखा गया.
गोरे काले सब बराबर हैं ये जब उसने कहा,
शोषकों के दंभ का प्रासाद ही भहरा गया.
उसकी वाणी से परिष्कृत हो गए मन के कलश,
उसकी शिक्षा का हरित-सागर हमें नहला गया.
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