हवाएं हैं गरीबाँ चाक हर जानिब उदासी है।
मुहब्बत के लिए पागल ज़मीं मुद्दत से प्यासी है॥
शजर पर इन बहारों में नयी कोंपल नहीं फूटी,
पुराने पत्तों की अब ज़िन्दगी बाक़ी ज़रा सी है॥
अयाँ है चान्द के मायूस मुर्दा ज़र्द चेहरे से,
सितारों के जहाँ में भी कहीं कोई वबा सी है ॥
चलो इस शह्र से ये शह्र बेगाना सा लगता है,
सुकूं नापैद है लोगों में बेहद बदहवासी है॥
लबे दरिया भी आजाओ तो कुछ राहत नहीं मिलती,
के पानी में किसी मरज़े नेहाँ की इब्तेदा सी है॥
ख़ुदा को देखना है गर तो मेरे शह्र में आओ,
दिखाऊं सूरतें ऐसी के हर सूरत ख़ुदा सी है॥
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