जिस्म के ज़िन्दाँ में उमरें क़ैद कर पाया है कौन ।
दख़्ल क़ुदरत के करिश्मों में भला देता है कौन॥
चान्द पर आबाद हो इन्साँ उसे भी है पसन्द,
उसकी मरज़ी गर न हो ऊंचाइयाँ छूता है कौन ॥
सब नताइज हैं हमारे नेको-बद आमाल के,
किसके हिस्से में है इज़्ज़त दर-बदर रुस्वा है कौन्॥
अक़्ल ने अच्छे-बुरे की दी है इन्साँ को तमीज़,
अपने घर से दुश्मनी पर फिर भी आमादा है कौन॥
इस बशर में हैं दरिन्दों की हज़ारों ख़सलतें,
देखना ये है के इनसे कब निकल पाया है कौन॥
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