Friday, March 19, 2010

शमअ के सामने तारीकियाँ सिमटी हुई हैं

शमअ के सामने तारीकियाँ सिमटी हुई हैं।
दिल है रौशन तो बलाएं सभी सहमी हुई हैं॥

प्यार का नफ़रतों से कोई तअल्लुक़ है ज़रूर,
ख़स्लतें दोनों की कुछ-कुछ कहीं मिलती हुई हैं॥

लकड़ियाँ गीली हैं जलने पे धुवाँ उठता है,
घर की दीवारें इसी वजह से काली हुई हैं॥

जानता हूँ मैँ उसे ख़ूब वो ऐसा तो नहीं,
तुहमतें उसपे बहरहाल ये थोपी हुई हैं॥

रेगज़ारों में था ये क़ाफ़्ला किस बेकस का,
किस की लाशें हैं जो इस तर्ह से कुचली हुई हैं॥

मेरे सीने में तो अब कोई हरारत ही नहीं,
बर्फ़ की भारी चटानें हैं जो रक्खी हुई हैं॥

खाइयाँ पहले से मौजूद थीं दिल में लेकिन,
उसकी बातों से ये कुछ और भि गहरी हुई हैं॥
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