हाँ तबीअत आजकल मेरी परीशाँ है बहोत्।
ठहरी-ठहरी ज़िन्दगी लगती परीशाँ है बहोत्॥
आसमानोँ पर कहीं सुनता हूं अनजाना सा शोर,
चाँद तारों की कोई बेटी परीशाँ है बहोत्॥
ख़फ़गियाँ आपस की ग़ैरों पर न खुल जायें कहीं,
दिल को है अन्देशए-सुबकी परीशाँ है बहोत्॥
मेरी तनहाई लिपटकर मुझसे रोई बार-बार,
देखकर मेरी बलानोशी परीशाँ है बहोत्॥
नफ़्स से कुछ कट गया है इसका रिश्ता इन दिनों,
जिसके बाइस पैकरे-ख़ाकी परीशाँ है बहोत्॥
मेरी उल्झन देखकर हैरत में हैं अहले-नज़र,
ज़िक्र है अहबाब में, तू भी परीशाँ है बहोत्॥
ख़ुम, सुराही, जाम, सब पाये गये ख़ामोश लब,
रिन्द रंज आलूद हैं साक़ी परीशाँ है बहोत्॥
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4 comments:
"मेरी तनहाई लिपटकर मुझसे रोई बार-बार,देखकर मेरी बलानोशी परीशाँ है बहोत्॥"
बहुत सुन्दर और भावुक रचना ।
मेरी उल्झन देखकर हैरत में हैं अहले-नज़र,
ज़िक्र है अहबाब में, तू भी परीशाँ है बहोत्.nice
बहुत अच्छा । बहुत सुंदर प्रयास है। जारी रखिये ।
आपका लेख अच्छा लगा।
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Behad khubsurati se zindgi ki jaddodahad ka manzar bataya hai aapane...Aabhar!
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