दिलों में ज़ख्म था, लब मुस्कुराते रहते थे.
हम अपना घर इसी सूरत सजाते रहते थे.
हरेक गाम पे ये ज़िन्दगी थी ज़ेरो-ज़बर,
तगैयुरात हमें आज़माते रहते थे.
वो चाहते थे भरम हो किसी की आहट का,
हवा के झोंके थे, परदे हिलाते रहते थे.
तअल्लुकात न थे, रस्मो-राह फिर भी थी,
तसव्वुरात में हम आते-जाते रहते थे.
ये बात सच है के हम खस्ता-हाल थे, लेकिन,
गिरे-पड़ों को हमेशा उठाते रहते थे.
न देख पाये कभी भी किसी की तश्ना-लबी,
मयस्सर आब था जितना पिलाते रहते थे.
ये जानते हुए इम्काने-रौशनी कम है,
हवा की ज़द में भी शमएँ जलाते रहते थे.
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मंगलवार, 16 जून 2009
दिलों में ज़ख्म था, लब मुस्कुराते रहते थे.
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