सब कुछ रवां-दवाँ है बज़ाहिर सुकून है।
बस ज़िन्दगी गराँ है बज़ाहिर सुकून है.
काग़ज़ की कश्तियों में हैं साँसों के क़ाफ़्ले,
दरिया हरीफ़े-जाँ है बज़ाहिर सुकून है.
चस्पाँ दिलों के दर पे है दहशत का इश्तेहार,
हर शख्स बे-ज़ुबाँ है बज़ाहिर सुकून है.
ज़ेरे-लिबासे-तक़वा सियः-कारियाँ हैं आम,
ईमान खूँ-चकाँ है बज़ाहिर सुकून है.
अंदेशए - शरारते - बे-जा फ़िज़ा में है,
मंज़र शरर - फ़िशां है बज़ाहिर सुकून है।
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रवां-दवाँ = गतिशील, गराँ = महँगी, हरीफ़े-जाँ = जान का दुश्मन, चस्पाँ =चिपका हुआ, इश्तेहार =विज्ञापन, ज़ेरे-लिबासे-तक़वा =सात्विकता के वस्त्रों के नीचे, सियः कारियाँ = काले धंधे, खूँ-चकाँ = खून से भरा हुआ, अंदेशए-शरारते-बेजा = बेतुके उपद्रव की आशंका, शरर-फ़िशां = चिंगारियों से भरा हुआ।
1 टिप्पणी:
बहुत अच्छी रचना है, उर्दू अल्फ़ाज़ का ज्ञानवर्धन भी हुआ, शुक्रिया
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