शुक्रवार, 19 जून 2009

हर रास्ता जो हक़ का है दुश्वार-तलब है.

हर रास्ता जो हक़ का है दुश्वार-तलब है.
आज़ादिए-अफ़कार सरे-दार तलब है.

क़ीमत में अगर सर भी वो मांगे तो नहीं ग़म,
वो साग़रे-उल्फ़त मुझे सौ बार तलब है.

जो तेरी रिज़ा के लिए घर-बार लुटा दे,
ऐसा ही मेरे रब मुझे किरदार तलब है.

देखो के वो करता है तहे-तेग़ भी सज्दा,
जानो के उसे नफ़्स का ईसार तलब है.

फ़ैयाज़िये-खालिक़ पे फ़रिश्ते भी हैं शशदर,
एज़ाज़ को मुझ जैसा ख़तावार तलब है.

इदराक के करता हो चरागों को जो रौशन,
आँखों को वही मंज़रे-खूँबार तलब है.
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हक़ = सत्य, दुश्वार-तलब = कठिनाईयों से पूर्ण, आज़दिये-अफ़कार = विचारों की स्वतंत्रता, सरे दार = सूली के ऊपर, तलब = अपेक्षित, साग़रे-उल्फ़त = प्रेम का प्याला, रिज़ा = स्वीकृति / पसंदीदगी, किरदार = चरित्र, तहे-तेग = तलवार के नीचे, ईसार = दूसरों के हित के लिए किया गया त्याग, फ़ैयाज़िये-खालिक = परमात्मा की कृपाशीलता, शशदर = आर्श्चय-चकित, एज़ाज़ = सम्मान, इदराक = बौद्धिकता, मंज़रे-खूँबार = रक्त बरसाता दृश्य,

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