धर्म की दीमक हुआ करती है वैसे भी सशक्त.
लोकतांत्रिक कुर्सियों पर दृष्टि है इसकी सशक्त.
स्वात-घाटी से कोई अनुबंध हो सकता न था,
होते सत्ता में अगर थोडा भी ज़रदारी सशक्त.
पाके जन-आधार विकसित जब हुई संकीर्णता,
नींव कट्टर-पंथ की होती गयी खुद ही सशक्त.
उस अयोध्या में परस्पर प्रेम से रहते थे सब,
धर्म के भूकंप ने आकर घृणा कर दी सशक्त.
साम्प्रदायिक भाषणों में और कुछ हो या न हो,
राजनेताओं की इनसे हो गयी कुर्सी सशक्त.
करके नर-संहार लोकप्रीयता ऐसी मिली,
सब चकित से रह गए, होते गए मोदी सशक्त.
भूमिकाएं अब चुनावों की बहोत रोचक सी हैं,
सब दलों ने चुन लिए हैं अपने कुछ साथी सशक्त.
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शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009
धर्म की दीमक हुआ करती है वैसे भी सशक्त.
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1 टिप्पणी:
एक अनूठे रदीफ़ के साथ अनूठी ग़ज़ल शैलेश साब...
इतनी सहजता से निभा गये हैं आप रदीफ़ को कि चमत्कृत हूँ
दूसरे शेर में तालिबान के आगे चरमरायी पड़ोसी-मुल्क इतना सुंदर चित्रण किया है सर आपने कि बस वाह-वाह किये जा रहा हूँ
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