मंगलवार, 25 नवंबर 2008

आग लगती है तो जल जाते हैं सब गर्दो-गुबार.

आग लगती है तो जल जाते हैं सब गर्दो-गुबार.
जिस्म की आग जला पाती है कब गर्दो-गुबार.
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आजकल कैसी फ़िज़ा है कि सभी की बातें,
इस तरह की हैं कि है उनके सबब गर्दो-गुबार.
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कोई चेहरा नहीं ऐसा जो नज़र आता हो साफ़,
सब पे है एक अजब गौर-तलब गर्दो-गुबार.
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मैं अभी कुछ न कहूँगा कि सभी हैं गुमराह,
पास आना मेरे छंट जाए ये जब गर्दो-गुबार.
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कूचे-कूचे में है अब शेरो-सुखन की महफ़िल,
हर तरफ़ आज उडाता है अदब गर्दो-गुबार.
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कूड़े-करकट पे खड़ी है ये तअस्सुब-नज़री,
ले के जायेंगे कहाँ लोग ये सब गर्दो-गुबार.
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कोई तदबीर करो, कुछ तो हवा ताज़ा मिले,
रोक लो, फैलने दो और न अब गर्दो-गुबार.
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1 टिप्पणी:

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

कठोर समसामयिक यथार्थ का मुखर चित्र।
बधाई।