Thursday, November 27, 2008

जाने कैसी ताक़तें हैं जो नचाती हैं हमें.

जाने कैसी ताक़तें हैं जो नचाती हैं हमें.
मौत की सौदागरी करना सिखाती हैं हमें.
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सिर्फ़ इंसानों पे क़ानूनों का होता है निफ़ाज़,
हरकतें वहशी दरिंदों की चिढ़ाती हैं हमें.
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अपना घर महफूज़ रखना हमने गर सीखा नहीं,
अपनी ही कमजोरियां ख़ुद तोड़ जाती हैं हमें.
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हम वो थे जिनसे मिली सारे जहाँ को रोशनी,
आज बद-आमालियाँ दर्पन दिखाती हैं हमें.
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मसअलों का हल कभी जज़बातियत होती नहीं,
कूवतें इदराक की पैहम बुलाती हैं हमें.
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शिकवा हमसाये से करते-करते हम तो थक गए,
उसकी लापर्वाइयां गैरत दिलाती हैं हमें.
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मुत्तहिद हो जाएँ हम ये वक़्त की आवाज़ है,
फ़र्ज़ की ललकारें ख़्वाबों से जगाती हैं हमें.
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2 comments:

"अर्श" said...

अपना घर महफूज़ रखना हमने गर सीखा नहीं,
अपनी ही कमजोरियां ख़ुद तोड़ जाती हैं हमें.

bahot hi badhiya prerana dayak panktiyan....

roushan said...

इस संकट की घड़ी में एकजुटता सबसे बड़ा संबल है