मंगलवार, 11 नवंबर 2008

जिस्म के ज़िन्दाँ में उम्रें क़ैद कर पाया है कौन.

जिस्म के ज़िन्दाँ में उम्रें क़ैद कर पाया है कौन.
दख्ल कुदरत के करिश्मों में भला देता है कौन.
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चाँद पर आबाद हो इन्सां, उसे भी है पसंद,
उसकी मरज़ी गर न हो, ऊंचाइयां छूता है कौन.
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सब नताइज हैं हमारे नेको-बद आमाल के,
किसके हिस्से में है इज्ज़त, दर-ब-दर रुसवा है कौन.
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अक़्ल ने अच्छे-बुरे की दी है इन्सां को तमीज़ ,
घर की बर्बादी पे, बद-अक़ली से, आमादा है कौन.
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इस बशर में हैं दरिंदों की भी सारी खस्लतें,
देखिये इन खस्लतों से आज वाबस्ता है कौन.
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हो न गर ईमान, फिर मज़हब से है क्या फ़ायदा,
दिल में रखकर मैल, क्या समझे कोई अच्छा है कौन।
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