बुधवार, 26 नवंबर 2008

शेख ने रक्खी है तस्बीह जो ज़ुन्नार के पास.

शेख ने रक्खी है तस्बीह जो ज़ुन्नार के पास.
एक दीवार खड़ी हो गई दीवार के पास.
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आबले, तश्ना-लबी, सोज़िशें, हिम्मत-शिकनी,
यही सरमाया बचा है रहे-पुर-ख़ार के पास.
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जीत लेते हैं मुहब्बत से जो गैरों का भी दिल,
ये हुनर आज मिलेगा भी तो दो-चार के पास.
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सिर्फ़ पैसों की फ़रावानी नहीं है सब कुछ,
हौसला होना ज़रूरी है खरीदार के पास.
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उसके आजाने से होता है ये महसूस मुझे,
नेमतें दुनिया की हैं इस दिले-सरशार के पास.
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ख़ुद-ब-ख़ुद आँखें खिंची जाती हैं उसकी जानिब,
एक नन्हा सा जो तिल है लबो-रुखसार के पास.
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सब हैं मसरूफ़, ये तनहाई है जाँ-सोज़ बहोत,
कोई दो लमहा तो बैठे कभी बीमार के पास.
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राह मुमकिन है निकल आये सुकूँ-बख्श कोई,
चल के देखें तो सही अब किसी गम-ख्वार के पास.
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काम भी आन पड़े गर कोई, जाना न वहाँ,
कभी हमदर्दियाँ होतीं नहीं ज़रदार के पास।

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कितने बुजदिल हैं जिन्हें कहते सुना है हमने,

कश्तियाँ लेके न जाओ कभी मझधार के पास.
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तस्बीह=मुसलामानों की जापमाला, जुन्नर=जनेऊ, आबले=छाले,तशनालबी=प्यास, सोजिशें=जलन, हिम्मत-शिकनी=उत्साह तोड़ना, सरमाया=संपत्ति, रहे-पुर-खार=काँटों भरा रास्ता, फ़रावानी=आधिक्य, नेमतें=ईश्वर की कृपाशीलता से प्राप्त सुख-सामग्री, दिले-सरशार=प्रसन्न ह्रदय, जाँ-सोज़=ह्रदय जलाने वाला, सुकूँ-बख्श=शान्तिदायक, गम-ख्वार=दुःख बांटने वाला, ज़रदार=धनाढ्य .

1 टिप्पणी:

"अर्श" ने कहा…

puri ghazal hi kamal ki ha khas kar iska matala to gajab ki dali hai aapne bahot khub sahab dhero badhai kubul farmaye....