अफ़साना सुनाता किसे, मसरूफ़ थे सब लोग.
अफ़साना किसी शख्स का, सुनते भी हैं कब लोग
चर्चा है, कि निकलेगा सरे-बाम वो महताब
इक टक उसे देखेंगे सुना आज की शब लोग.
ये फ़िक्र किसी को नहीं क्या गुज़री है मुझ पर
हाँ जानना चाहेंगे जुदाई का सबब लोग.
राजाओं नवाबों का ज़माना है कहाँ अब
फिर लिखते हैं क्यों नाम में ये मुर्दा लक़ब लोग
लज्ज़त से गुनाहों की जो वाक़िफ़ न रहे हों
इस तर्ह के होते थे न पहले, न हैं अब लोग
यूँ मसअले रखते हैं, लरज़ जाइए सुनकर
सीख आए हैं किस तर्ह का ये हुस्ने-तलब लोग.
लोग आज भी नस्लों की फ़ज़ीलत पे हैं नाजां
बात आए तो बढ़-चढ़ के बताते हैं नसब लोग.
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Thursday, August 28, 2008
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2 comments:
ये फ़िक्र किसी को नहीं क्या गुज़री है मुझ पर
हाँ जानना चाहेंगे जुदाई का सबब लोग....
सही कहा आपने.... अच्छा शेर है।
पढ़वाने का आप को बहुत शुक्रिया.
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