अभी-अभी टहनियों के बीच का आकाश
किसने रचा ?
हमारे गाँव की दिशा खुली
घास की चूड़ी बनती हुई
उजली रातों की बात मुझसे करती है
मेरी छोटी बहन.
दिन फसलों के बीच फिसलता हुआ
ठीक से पाक गया
कोई पिछला समय
मकान के अहाते में पेड़ों पर
चढ़ा हुआ
एक और शुरूआत बदली
मेरी तारीखों के आस-पास
खूब लम्बी होकर
अपने पर ही ढल गई है घास.
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Friday, August 29, 2008
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1 comment:
Sunder!
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