रह गयीं बिछी आँखें और तुम नहीं आये।
मुज़महिल हुईं यादें और तुम नहीं आये ॥
चान्द की हथेली पर रख के सर मुहब्बत से,
सो गयीं थकी किरनें और तुम नहीं आये ॥
ख़त तुम्हारे पढ़-पढ़ कर चांदनी भी रोई थी,
नम थीं रात की पलकें और तुम नहीं आये॥
धूप होके आँगन से छत पे जाके बैठी थी,
कोई भी न था घर में और तुम नहीं आये॥
टुकड़े-टुकड़े हो-हो कर चुभ रही थीं सीने में,
इन्तेज़ार की किरचें और तुम नहीं आये ॥
नीम पर लटकते हैं अब भी सावनी झूलए,
जा रही हैं बरसातें और तुम नहीं आये॥
*********************
1 टिप्पणी:
bahut hi sundar bhaaw hai ......aise hi likhate rahe .....atisundar
एक टिप्पणी भेजें