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सोमवार, 27 जुलाई 2009

रह गयीं बिछी आँखें और तुम नहीं आये।

रह गयीं बिछी आँखें और तुम नहीं आये।

मुज़महिल हुईं यादें और तुम नहीं आये ॥

चान्द की हथेली पर रख के सर मुहब्बत से,

सो गयीं थकी किरनें और तुम नहीं आये ॥

ख़त तुम्हारे पढ़-पढ़ कर चांदनी भी रोई थी,

नम थीं रात की पलकें और तुम नहीं आये॥

धूप होके आँगन से छत पे जाके बैठी थी,

कोई भी न था घर में और तुम नहीं आये॥

टुकड़े-टुकड़े हो-हो कर चुभ रही थीं सीने में,

इन्तेज़ार की किरचें और तुम नहीं आये ॥

नीम पर लटकते हैं अब भी सावनी झूलए,

जा रही हैं बरसातें और तुम नहीं आये॥

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