मंगलवार, 24 नवंबर 2009

शाख़ से फल की तरह पक के टपक जायेंगे

शाख़ से फल की तरह पक के टपक जायेंगे ।
इतनी तारीफ़ करोगे तो बहक जायेंगे ॥

फ़र्श पर रहते हुए अर्श पे उड़ते हैं फ़ुज़ूल ,
रोक लो अपने देमाग़ों को भटक जायेंगे ॥

कब हमें बाहमी रिश्तों पे भरोसा होगा ,
कब दिलों में हैं जो बैठे हुए शक जायेंगे ॥

घुट के रह जायेगी सीनों में सदाए-फ़रियाद,
अब ये नाले न कभी ता-बः-फ़लक जायेंगे ॥

क्या ख़बर थी कभी हालात के ज़ख़्मों पे नमक,
वक़्त के हाथ ख़मोशी से छिड़क जायेंगे ॥
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1 टिप्पणी:

"अर्श" ने कहा…

baat karte hain matale ki to aisa matlaa hi gazal ko ijjat bakhshte hain... aur fir dusaraa she'r uffff kamaal ka banaa hai magar jabaa baat tisare she'r pe hoti hai to ye aam bol chaal ki baat aapne jis nafaasat ki hai wo kamaal ki baat hai ... saare hi she'r jhanjhnaa rahe hain... badhaayee kubul karen..


arsh