दिल के तवे पे जलते हैं लफ़ज़ों के कारवाँ।
हो जायें राख राख न ख़्वाबों के कारवाँ॥
टुकड़ों में बँट गया है मेरा इस तरह वुजूद ,
हँसते हैं मेरी ज़ात पे अश्कों के कारवाँ ॥
मैं कल ज़मीन ओढ़ के सो जाऊँगा यहाँ ,
आयेंगे मेरे पास फ़रिश्तों के कारवाँ ॥
इक स्म्त हम को एटमी ताक़त का है ग़ुरूर,
इक स्म्त ख़ूँ-चकाँ हैं धमाकों के कारवाँ ॥
तरीख़ के हैं जिस्म पे नाख़ून के निशाँ,
बोसीदा हो चुके हैं किताबों के कारवाँ ॥
बीनाइयों की लाशें हुईं ख़ाक के सुपुर्द,
फिरते हैं अन्धी राह पे नस्लों के कारवाँ ॥
वो देखो उलटे लटके हैं सूली पे वक़्त की ,
कितनी हवास-बाख़्ता सदियोँ के कारवाँ ॥
*************
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें