शाख़ से फल की तरह पक के टपक जायेंगे ।
इतनी तारीफ़ करोगे तो बहक जायेंगे ॥
फ़र्श पर रहते हुए अर्श पे उड़ते हैं फ़ुज़ूल ,
रोक लो अपने देमाग़ों को भटक जायेंगे ॥
कब हमें बाहमी रिश्तों पे भरोसा होगा ,
कब दिलों में हैं जो बैठे हुए शक जायेंगे ॥
घुट के रह जायेगी सीनों में सदाए-फ़रियाद,
अब ये नाले न कभी ता-बः-फ़लक जायेंगे ॥
क्या ख़बर थी कभी हालात के ज़ख़्मों पे नमक,
वक़्त के हाथ ख़मोशी से छिड़क जायेंगे ॥
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