दोस्तों से राब्ता रखना बहोत मुश्किल हुआ।
कुछ ख़ुशी, कुछ हौसला रखना बहोत मुश्किल हुआ॥
वक़्त का शैतान हावी हो चुका है इस तरह,
दिल के गोशे में ख़ुदा रखना बहोत मुश्किल हुआ॥
किस तरफ़ जायेंगे क्या क्या सूरतें होंगी कहाँ,
ज़ेह्न में ये फ़ैसला रखना बहोत मुश्किल हुआ॥
हो चुके हैं फ़िक्र के लब ख़ुश्क भी, मजरूह भी,
उन लबों पर अब दुआ रखना बहोत मुश्किल हुआ॥
मान लेना चाहिये सारी ख़ताएं हैं मेरी,
आज ख़ुद को बे-ख़ता रखना बहोत मुश्किल हुआ॥
कब कोई तूफ़ाँ उठे, कब हो तबाही गामज़न,
मौसमे-गुल को जिला रखना बहोत मुश्किल हुआ॥
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2 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा ख़्याल!
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गुलाबी कोंपलें
'आज ख़ुद को बे-ख़ता रखना…'
बहुत ख़ूब!
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