दरिया की ये आहिस्ता-ख़रामी कोई देखे.
संजीदगिये-ज़ह्न की खूबी कोई देखे.
शतरंज के मुहरों के फ़साने हुए नापैद,
तस्वीर बिसातों की है उलटी कोई देखे.
आवाज़ए-हक़ गूंजने से आज है क़ासिर,
हर क़ल्ब सदाओं से है खाली कोई देखे.
वो आग के दरिया से निकल आया सलामत.
साहिल पे हुई ग़र्क़ वो कश्ती कोई देखे.
क्या बात है, क्यों शोला-फ़िशां हो गया कुहसार,
लावा है रवां आग है बहती कोई देखे.
हर लह्ज़ा हुआ करती है हर फ़िक्र की तरदीद,
हैरानो-परीशान है जो भी कोई देखे.
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Friday, April 24, 2009
दरिया की ये आहिस्ता-ख़रामी कोई देखे.
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2 comments:
वो आग के दरिया से निकल आया सलामत.
साहिल पे हुई ग़र्क़ वो कश्ती कोई देखे.
बहुत अच्छा। सुन्दर प्रस्तुति। वाह।। कहते हैं कि-
तूफान से गुजरकर बहुत मुतमईन थे हम।
साहल पे डूब जायेगी कश्ती, खबर न थी।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
Sunadar likha hai aapane....
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