बुधवार, 22 अप्रैल 2009

वो आसमानों से रखता है हमसरी का जुनूं.

वो आसमानों से रखता है हमसरी का जुनूं.
ज़मीन-दोज़ न कर दे उसे उसी का जुनूं.

जदीदियत का धुंआ भर रहा था आँखों में,
ठहर सका न वहां फिक्रो--आगही का जुनूं.

सवाले-सूदो-ज़ियाँ उसके सामने कब था,
नुमायाँ करता रहा उसको सादगी का जुनूं.

नसीहतों से है अंदेशा संगबारी का,
शबाब पर है ज़माने में गुमरही का जुनूं.

नतीजा सिर्फ ये था उसकी खुद-कलामी का,
के रास आया उसे शरहे-बेखुदी का जुनूं.

मुहर्रेकात हैं तख्लीक़े-नौ के आवारा,
समेटता है इन्हें दिल की बेकली का जुनूं.

ज़मीं की क़ूवते-बर्दाश्त को न अब परखो,
तबाह-कुन है बहोत उसकी बरहमी का जुनूं.
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1 टिप्पणी:

गौतम राजऋषि ने कहा…

मतले की तीव्रता अंदर तक बेधती है

"नसीहतों से है अंदेशा संगबारी का" वाला शेर बेमिसाल लगा