बुधवार, 15 अक्तूबर 2008

बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए।

बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गए।
मौसम के हाथ भीग के सफ्फाक हो गए।
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बादल को क्या ख़बर है कि बारिश की चाह में,
कितने बलन्दो-बाला शजर ख़ाक हो गए।
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जुगनू को दिन के वक़्त पकड़ने की जिद करें,
बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गए।
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जब भी गरीबे-शहर से कुछ गुफ्तुगू हुई,
लहजे हवाए-शाम के नमनाक हो गए।
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साहिल पे जितने आब-गुज़ीदा थे सब-के-सब,
दुनिया के रुख बदलते ही तैराक हो गए।
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