रविवार, 15 जून 2008

शैलेश ज़ैदी के दोहे

गंगा में स्नान से जब धो आया सारे पाप
जज साहब ! फिर पापी को क्यों दंड सुनाते आप
ईश्वर ने कब किया आपको न्यायाधीश नियुक्त
उसके न्यायलय में होंगे आप भी कल अभियुक्त
निर्दोशी हैं दण्डित होते दोषी फिरें स्वतंत्र
न्यायालय में नित्य हुआ करते ऐसे षड़यंत्र
आरक्षण ने बदला जब कुछ दलितों का संसार
ठाकुर के भी बाप बन गये वह पाकर अधिकार
दहशतगर्दी धर्म है, या है धर्म ही दहशतगर्द
दोनों में मुखरित रहते हैं कुछ कुत्सित नामर्द
अमेरिका ने छेड़ दिया ईराक में जब संगीत
क़व्वाली पर मग्न हुए बुश के सहधर्मी मीत
वामपंथ से जिस दिन से जुड़ गए हैं घर के लोग
नित्य लगाते चाओमीन, बर्गर, पिज़्ज़ा का भोग
पहली है अभिशाप, दूसरी पत्नी है सम्मान
दो विवाह करना भारत में मार्क्सवाद की शान
बच्चे नित्य मदरसों में पढ़ते कुरआन मजीद
मुसलमान हैं फ़ाक़ा करते मुल्लाओं की ईद
सर पर टोपी मढ़कर, ताज़ा कर लिया दीन-ईमान
दौडे-भागे मस्जिद आये, सुन ली जब भी अज़ान
हज को गए थे सोंचके बख्शेगा अल्लाह गुनाह
वापस आकर फिर अपनाली, वही पुरानी राह
रामचंद्र जी का जन्मस्थल दशरथ का प्रासाद
और बाबरी मस्जिद बन गई, जन्मस्थली विवाद
राजपूत अब कथा बांचते, पंडित सेनाध्यक्ष
राजनीति ने जन्म दिया है कलजुग को, प्रत्यक्ष
होती है हर कृष्ण की राधा, मान लो ये सच भाई
अपनी राधा को खुश रक्खो, खाओ दूध मलाई
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