न जाने क्या हो रहा है!
मेरे गाँव को...
पूरी रात का बोझ
अपने कुबड़े कंधों
पर ढो रहा है.
कुत्ते जो यहाँ के
आदमियों से भी अधिक
आवारा हैं, भौंक रहे हैं,
और आदमी!
कुत्तों की आवाज़ से
चौंक रहे हैं.
गाँव के सूखे पोखर
आजकल थकावट
घोल जाते हैं और
भेड़-बकरियों के झुण्ड
भटकते ही रहते हैं
अपने ही पांवों से
पैदा हुए अंधड़ में.
कौन यहाँ
खेतों और खलिहानों में
बीता हुआ वक़्त बो रहा है!
पता नहीं,
मेरे गाँव को क्या हो रहा है!
पूरी ज़िन्दगी का बोझ
अपने कुबड़े कंधों पर ढो रहा है.
********************
75/44, क्षिप्रा पथ, मानसरोवर, जयपुर-302020
e-mail: sudhirsaxenasudhi@yahoo.com
रविवार, 31 अगस्त 2008
रिन्दों के लब पे / ज़ैदी जाफ़र रज़ा
रिन्दों के लब पे मय की ग़ज़ल का खुमार था
मयखाना आज रात बहोत बे-क़रार था
फूलों के साथ रात में क्या हादसा हुआ
हर फूल सुब्ह होने पे क्यों अश्कबार था
जो आखिरी सुतून था कल वो भी गिर गया
घर का उसी सुतून पे दारोमदार था
उस शह्र के थे लोग निहायत थके हुए
चेहरों पे सब के वक़्त का गर्दो-गुबार था
उसको खिज़ाँ ने फेंक दिया जाने किस जगह
वो शख्स पुर-खुलूस था, बागो-बहार था
अफ़साने ज़िन्दगी के वो लिखता था बे-मिसाल
दर-अस्ल वो कमाल का फ़ितरत-निगार था
मेरी मुहब्बतें भी फ़क़त इक दिखावा थीं
उसकी वफ़ाओं का भी कहाँ एतबार था
*********************
मयखाना आज रात बहोत बे-क़रार था
फूलों के साथ रात में क्या हादसा हुआ
हर फूल सुब्ह होने पे क्यों अश्कबार था
जो आखिरी सुतून था कल वो भी गिर गया
घर का उसी सुतून पे दारोमदार था
उस शह्र के थे लोग निहायत थके हुए
चेहरों पे सब के वक़्त का गर्दो-गुबार था
उसको खिज़ाँ ने फेंक दिया जाने किस जगह
वो शख्स पुर-खुलूस था, बागो-बहार था
अफ़साने ज़िन्दगी के वो लिखता था बे-मिसाल
दर-अस्ल वो कमाल का फ़ितरत-निगार था
मेरी मुहब्बतें भी फ़क़त इक दिखावा थीं
उसकी वफ़ाओं का भी कहाँ एतबार था
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शनिवार, 30 अगस्त 2008
सभी को अपना समझता हूँ / आशुफ़्ता चंगेज़ी
सभी को अपना समझता हूँ क्या हुआ है मुझे
बिछड़ के तुझ से अजब रोग लग गया है मुझे
जो मुड के देखा तो हो जायेगा बदन पत्थर
कहानियों में सुना था, सो भोगना है मुझे
अभी तलक तो कोई वापसी की राह न थी
कल एक राहगुज़र का पता लगा है मुझे
मैं सर्द जंग की आदत न डाल पाऊंगा
कोई महाज़ पे वापस बुला रहा है मुझे
यहाँ तो साँस भी लेने में खासी मुश्किल है
पड़ाव अबके कहाँ हो ये सोचना है मुझे
सड़क पे चलते हुए आँखें बंद रखता हूँ
तेरे जमाल का ऐसा मज़ा पड़ा है मुझे
मैं तुझको भूल न पाया यही ग़नीमत है
यहाँ तो इसका भी इमकान लग रहा है मुझे
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बिछड़ के तुझ से अजब रोग लग गया है मुझे
जो मुड के देखा तो हो जायेगा बदन पत्थर
कहानियों में सुना था, सो भोगना है मुझे
अभी तलक तो कोई वापसी की राह न थी
कल एक राहगुज़र का पता लगा है मुझे
मैं सर्द जंग की आदत न डाल पाऊंगा
कोई महाज़ पे वापस बुला रहा है मुझे
यहाँ तो साँस भी लेने में खासी मुश्किल है
पड़ाव अबके कहाँ हो ये सोचना है मुझे
सड़क पे चलते हुए आँखें बंद रखता हूँ
तेरे जमाल का ऐसा मज़ा पड़ा है मुझे
मैं तुझको भूल न पाया यही ग़नीमत है
यहाँ तो इसका भी इमकान लग रहा है मुझे
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चुप्पी / रणजीत
मेरे भीतर उमड़ती है एक कविता
घुमड़ती है एक गाली
मैं उगल देना चाहता हूँ
एक नारे में अपनी सारी घुटन.
मेरी आत्मा कचोटती है
कहती है-कायर ! बोल
पर मैं चुप हूँ.
चुप्पी और चापलूसी में बँट गया है पूरा देश
और मैं चुप्पी चुनता हूँ
पर एक तीसरा विकल्प भी है - जेल
अपने सिर के बालों तक से
लोगों का अधिकार छिन गया है
अब पुलिस ही तय करती है कि वे रहें या न रहें
मैं कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैली हुई
एक लम्बी-चौडी जेल में बंद हूँ
पर और छोटी जेल में जाने से डरता हूँ
क्योंकि वहाँ न जाने कितने बरसों के लिए
अलग कर दिया जायेगा मुझे
अपनी नन्ही बच्ची से
और सबसे बड़ी बात
हो सकता है मुझे आर एस एस का ही सदस्य
घोषित कर दिया जाय
सब कुछ उनके हाथ में है
सत्य भी और न्याय भी
इसलिए मैं चुप्पी चुनता हूँ
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घुमड़ती है एक गाली
मैं उगल देना चाहता हूँ
एक नारे में अपनी सारी घुटन.
मेरी आत्मा कचोटती है
कहती है-कायर ! बोल
पर मैं चुप हूँ.
चुप्पी और चापलूसी में बँट गया है पूरा देश
और मैं चुप्पी चुनता हूँ
पर एक तीसरा विकल्प भी है - जेल
अपने सिर के बालों तक से
लोगों का अधिकार छिन गया है
अब पुलिस ही तय करती है कि वे रहें या न रहें
मैं कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैली हुई
एक लम्बी-चौडी जेल में बंद हूँ
पर और छोटी जेल में जाने से डरता हूँ
क्योंकि वहाँ न जाने कितने बरसों के लिए
अलग कर दिया जायेगा मुझे
अपनी नन्ही बच्ची से
और सबसे बड़ी बात
हो सकता है मुझे आर एस एस का ही सदस्य
घोषित कर दिया जाय
सब कुछ उनके हाथ में है
सत्य भी और न्याय भी
इसलिए मैं चुप्पी चुनता हूँ
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याद आयेंगे ज़माने को / फ़ारिग़ बुखारी
याद आयेंगे ज़माने को मिसालों के लिए
जैसे बोसीदा किताबें हों हवालों के लिए
देख यूँ वक़्त की दहलीज़ से टकरा के न गिर
रास्ते बंद नहीं सोचने वालों के लिए
आओ तामीर करें अपनी वफ़ा का माबुद
हम न मस्जिद के लिए हैं न शिवालों के लिए
सालहा-साल अक़ीदत से खुली रहती है
मुनफ़रिद रास्तों की गोद, जियालों के लिए
रात का कर्ब है गुल्बांगे-सहर का खलिक़
प्यार का गीत है ये दर्द, उजालों के लिए
शबे-फुरक़त में सुलगती हुई यादों के सिवा
और क्या रक्खा है हम चाहने वालों के लिए
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जैसे बोसीदा किताबें हों हवालों के लिए
देख यूँ वक़्त की दहलीज़ से टकरा के न गिर
रास्ते बंद नहीं सोचने वालों के लिए
आओ तामीर करें अपनी वफ़ा का माबुद
हम न मस्जिद के लिए हैं न शिवालों के लिए
सालहा-साल अक़ीदत से खुली रहती है
मुनफ़रिद रास्तों की गोद, जियालों के लिए
रात का कर्ब है गुल्बांगे-सहर का खलिक़
प्यार का गीत है ये दर्द, उजालों के लिए
शबे-फुरक़त में सुलगती हुई यादों के सिवा
और क्या रक्खा है हम चाहने वालों के लिए
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तनहाई के बाद / शहज़ाद अहमद
झांकता है तेरी आंखों से ज़मानों का खला
तेरे होंटों पे मुसल्लत है बड़ी देर की प्यास
तेरे सीने में रहा शोरे-बहारां का खरोश
अब तो साँसों में न गर्मी है, न आवाज़, न बास
फिर भी बाहों को है सदियों की थकन का एहसास
तेरे चेहरे पे सुकूं खेल रहा है लेकिन
तेरे सीने में तो तूफ़ान गरजते होंगे
बज़्मे-कौनैन तेरी आँख में वीरान सही
तेरे ख्वाबों के मुहल्लात तो सजते होंगे
गरचे अब कोई नहीं कोई नहीं आएगा
फिर भी आहट पे तेरे कान तो बजते होंगे
वक़्त है नाग तेरे जिस्म को डसता होगा
देख कर तुझ को हवाएं भी बिफरती होंगी
सब तेरे साए को आसेब समझते होंगे
तुझ से हमजोलियाँ कतरा के गुज़रती होंगी
तू जो तनहाई के एहसास से रोती होगी
कितनी यादें तेरे अश्कों से उभरती होंगी
ज़िन्दगी हर नए अंदाज़ को अपनाती है
ये फरेब अपने लिए जाल नए बुनता है
रक्स करती है तेरे होंटों पे हलकी सी हँसी
और जी को, कोई रूई की तरह धुनता है
लाख परदों में छुपा शोरे-अज़ीयत लेकिन
मेरा दिल तेरे धड़कने की सदा सुनता है
तेरा ग़म जागता है दिल के नेहां-खानों में
तेरी आवाज़ से सीने में फुगाँ पैदा है
तेरी आंखों की उदासी मुझे करती है उदास
तेरी तनहाई के एहसास से दिल तनहा है
जागती तू है तो थक जाती हैं आँखें मेरी
ज़ख्म जलते हैं तेरे, दर्द मुझे होता है.
************************
तेरे होंटों पे मुसल्लत है बड़ी देर की प्यास
तेरे सीने में रहा शोरे-बहारां का खरोश
अब तो साँसों में न गर्मी है, न आवाज़, न बास
फिर भी बाहों को है सदियों की थकन का एहसास
तेरे चेहरे पे सुकूं खेल रहा है लेकिन
तेरे सीने में तो तूफ़ान गरजते होंगे
बज़्मे-कौनैन तेरी आँख में वीरान सही
तेरे ख्वाबों के मुहल्लात तो सजते होंगे
गरचे अब कोई नहीं कोई नहीं आएगा
फिर भी आहट पे तेरे कान तो बजते होंगे
वक़्त है नाग तेरे जिस्म को डसता होगा
देख कर तुझ को हवाएं भी बिफरती होंगी
सब तेरे साए को आसेब समझते होंगे
तुझ से हमजोलियाँ कतरा के गुज़रती होंगी
तू जो तनहाई के एहसास से रोती होगी
कितनी यादें तेरे अश्कों से उभरती होंगी
ज़िन्दगी हर नए अंदाज़ को अपनाती है
ये फरेब अपने लिए जाल नए बुनता है
रक्स करती है तेरे होंटों पे हलकी सी हँसी
और जी को, कोई रूई की तरह धुनता है
लाख परदों में छुपा शोरे-अज़ीयत लेकिन
मेरा दिल तेरे धड़कने की सदा सुनता है
तेरा ग़म जागता है दिल के नेहां-खानों में
तेरी आवाज़ से सीने में फुगाँ पैदा है
तेरी आंखों की उदासी मुझे करती है उदास
तेरी तनहाई के एहसास से दिल तनहा है
जागती तू है तो थक जाती हैं आँखें मेरी
ज़ख्म जलते हैं तेरे, दर्द मुझे होता है.
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शुक्रवार, 29 अगस्त 2008
अपराध / लीलाधर जगूडी
जहाँ-जहाँ पर्वतों के माथे
थोड़ा चौडे हो गए हैं
वहीं-वहीं बैठेंगे
फूल उगने तक
एक दूसरे की हथेलियाँ गरमाएंगे
दिग्विजय की खुशी में
मन फटने तक
देह का कहाँ तक करें बंटवारा
आजकल की घास पर घोडे सो गए हैं
मृत्यु को जन्म देकर
ईश्वर अपराधी है
इतनी जोरों से जियें हम दोनों
कि ईश्वर के अंधेरे को
क्षमा कर सकें.
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थोड़ा चौडे हो गए हैं
वहीं-वहीं बैठेंगे
फूल उगने तक
एक दूसरे की हथेलियाँ गरमाएंगे
दिग्विजय की खुशी में
मन फटने तक
देह का कहाँ तक करें बंटवारा
आजकल की घास पर घोडे सो गए हैं
मृत्यु को जन्म देकर
ईश्वर अपराधी है
इतनी जोरों से जियें हम दोनों
कि ईश्वर के अंधेरे को
क्षमा कर सकें.
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अभी-अभी / लीलाधर जगूडी
अभी-अभी टहनियों के बीच का आकाश
किसने रचा ?
हमारे गाँव की दिशा खुली
घास की चूड़ी बनती हुई
उजली रातों की बात मुझसे करती है
मेरी छोटी बहन.
दिन फसलों के बीच फिसलता हुआ
ठीक से पाक गया
कोई पिछला समय
मकान के अहाते में पेड़ों पर
चढ़ा हुआ
एक और शुरूआत बदली
मेरी तारीखों के आस-पास
खूब लम्बी होकर
अपने पर ही ढल गई है घास.
*******************
किसने रचा ?
हमारे गाँव की दिशा खुली
घास की चूड़ी बनती हुई
उजली रातों की बात मुझसे करती है
मेरी छोटी बहन.
दिन फसलों के बीच फिसलता हुआ
ठीक से पाक गया
कोई पिछला समय
मकान के अहाते में पेड़ों पर
चढ़ा हुआ
एक और शुरूआत बदली
मेरी तारीखों के आस-पास
खूब लम्बी होकर
अपने पर ही ढल गई है घास.
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मौत का रक़्स / ज़ैदी जाफ़र रज़ा
अभी हाल में उडीसा में ईसाइयों के साथ जो कुछ घटित हुआ और उसके प्रतिरोध में कुछ नेताओं के मुखौटे पहन कर जो जुलूस निकाले गए उनसे प्रभावित होकर ज़ैदी जाफ़र रज़ा ने यह नज़्म लिखी है जिसे पेश किया जा रहा है. परवेज़ फ़ातिमा
मौत का रक़्स
मौत का रक़्स अगर देखना चाहो तो मेरे साथ चलो
कुछ मनाज़िर हैं मेरी आंखों में
देखो उस शहर में पेशानियों पर मौत का पैगाम लिए
जाने पहचाने कुछ अफराद चले आते हैं
अपने सफ़्फ़ाक क़वी हाथों में समसाम लिए
उनकी आंखों में है अदवानी शराबों का खुमार
उनके चेहरों पे हैं सावरकरी तेवर के सभी नक़्शो-निगार
लोग कहते हैं कि ये मौत के हैं ठेकेदार
ये जहाँ जाते हैं होता है वहाँ मौत का रक़्स
चीखें बन जाती हैं इनके लिए घुँघरू की सदा
सुनके होते हैं मगन लाशों की बदबू की सदा
मौत के रक़्स में है इनकी ज़फर्याबी का जश्न
ये मनाते हैं बड़े शौक़ से इंसानों की बेताबी का जश्न
**********************
मौत का रक़्स
मौत का रक़्स अगर देखना चाहो तो मेरे साथ चलो
कुछ मनाज़िर हैं मेरी आंखों में
देखो उस शहर में पेशानियों पर मौत का पैगाम लिए
जाने पहचाने कुछ अफराद चले आते हैं
अपने सफ़्फ़ाक क़वी हाथों में समसाम लिए
उनकी आंखों में है अदवानी शराबों का खुमार
उनके चेहरों पे हैं सावरकरी तेवर के सभी नक़्शो-निगार
लोग कहते हैं कि ये मौत के हैं ठेकेदार
ये जहाँ जाते हैं होता है वहाँ मौत का रक़्स
चीखें बन जाती हैं इनके लिए घुँघरू की सदा
सुनके होते हैं मगन लाशों की बदबू की सदा
मौत के रक़्स में है इनकी ज़फर्याबी का जश्न
ये मनाते हैं बड़े शौक़ से इंसानों की बेताबी का जश्न
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लाओ, हाथ अपना लाओ ज़रा / फ़हमीदा रियाज़
लाओ हाथ अपना लाओ ज़रा
छू के मेरा बदन
अपने बच्चे के दिल का धड़कना सुनो
नाफ़ के इस तरफ़
उसकी जुम्बिश को महसूस करते हो तुम ?
बस, यहीं छोड़ दो
थोडी देर और इस हाथ को
मेरे ठंडे बदन पर, यहीं छोड़ दो
मेरे ईसा ! मेरे दर्द के चारागर
मेरा हर मूए-तन, इस हथेली से तस्कीन पाने लगा
इस हथेली के नीचे मेरा लाल करवट सी लेने लगा
उँगलियों से बदन उसका पहचान लो
तुम उसे जान लो
चूमने दो मुझे अपनी ये उँगलियाँ
इनकी हर पोर को चूमने दो मुझे
नाखूनों को लबों से लगा लूँ ज़रा
इस हथेली में मुंह तो छुपा लूँ ज़रा
फूल लाती हुई ये हरी उँगलियाँ
मेरी आंखों से आंसू उबलते हुए
उनसे सींचूंगी मैं
फूल लाती हुई उँगलियों की जड़ें
चूमने दो मुझे
अपने बाल, अपने माथे का चाँद, अपने लब
ये चमकती हुई काली आँखें
मुस्कुराती ये हैरान आँखें
मेरे कांपते होंट, मेरी छलकती हुई आँख को
देख कर कितने हैरान हैं !
तुमको मालूम क्या
तुमने जाने मुझे क्या से क्या कर दिया
मेरे अन्दर अंधेरे का आसेब था
यूँ ही फिरती थी मैं
ज़ीस्त के ज़ायके को तरसती हुई
दिल में आंसू भरे, सब पे हंसती हुई
तुमने अन्दर मेरा इस तरह भर दिया
फूटती है मेरे जिस्म से रोशनी
सब मुक़द्दस किताबें जो नाज़िल हुईं
सब पयम्बर जो अब तक उतारे गए
सब फ़रिश्ते कि हैं बादलों से परे
रंग, संगीत, सुर, फूल, कलियाँ, शजर
सुब्ह दम पेड़ की झूलती डालियाँ
उनके मफहूम जो भी बताये गए
ख़ाक पर बसने वाले बशर को
मसर्रत के जितने भी नग़मे सुनाये गए
सब रिशी, सब मुनी, अम्बिया, औलिया
खैर के देवता, हुस्न, नेकी, खुदा
आज सब पर मुझे एतबार आ गया
एतबार आ गया .
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छू के मेरा बदन
अपने बच्चे के दिल का धड़कना सुनो
नाफ़ के इस तरफ़
उसकी जुम्बिश को महसूस करते हो तुम ?
बस, यहीं छोड़ दो
थोडी देर और इस हाथ को
मेरे ठंडे बदन पर, यहीं छोड़ दो
मेरे ईसा ! मेरे दर्द के चारागर
मेरा हर मूए-तन, इस हथेली से तस्कीन पाने लगा
इस हथेली के नीचे मेरा लाल करवट सी लेने लगा
उँगलियों से बदन उसका पहचान लो
तुम उसे जान लो
चूमने दो मुझे अपनी ये उँगलियाँ
इनकी हर पोर को चूमने दो मुझे
नाखूनों को लबों से लगा लूँ ज़रा
इस हथेली में मुंह तो छुपा लूँ ज़रा
फूल लाती हुई ये हरी उँगलियाँ
मेरी आंखों से आंसू उबलते हुए
उनसे सींचूंगी मैं
फूल लाती हुई उँगलियों की जड़ें
चूमने दो मुझे
अपने बाल, अपने माथे का चाँद, अपने लब
ये चमकती हुई काली आँखें
मुस्कुराती ये हैरान आँखें
मेरे कांपते होंट, मेरी छलकती हुई आँख को
देख कर कितने हैरान हैं !
तुमको मालूम क्या
तुमने जाने मुझे क्या से क्या कर दिया
मेरे अन्दर अंधेरे का आसेब था
यूँ ही फिरती थी मैं
ज़ीस्त के ज़ायके को तरसती हुई
दिल में आंसू भरे, सब पे हंसती हुई
तुमने अन्दर मेरा इस तरह भर दिया
फूटती है मेरे जिस्म से रोशनी
सब मुक़द्दस किताबें जो नाज़िल हुईं
सब पयम्बर जो अब तक उतारे गए
सब फ़रिश्ते कि हैं बादलों से परे
रंग, संगीत, सुर, फूल, कलियाँ, शजर
सुब्ह दम पेड़ की झूलती डालियाँ
उनके मफहूम जो भी बताये गए
ख़ाक पर बसने वाले बशर को
मसर्रत के जितने भी नग़मे सुनाये गए
सब रिशी, सब मुनी, अम्बिया, औलिया
खैर के देवता, हुस्न, नेकी, खुदा
आज सब पर मुझे एतबार आ गया
एतबार आ गया .
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