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शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

लाओ, हाथ अपना लाओ ज़रा / फ़हमीदा रियाज़

लाओ हाथ अपना लाओ ज़रा
छू के मेरा बदन
अपने बच्चे के दिल का धड़कना सुनो
नाफ़ के इस तरफ़
उसकी जुम्बिश को महसूस करते हो तुम ?
बस, यहीं छोड़ दो
थोडी देर और इस हाथ को
मेरे ठंडे बदन पर, यहीं छोड़ दो
मेरे ईसा ! मेरे दर्द के चारागर
मेरा हर मूए-तन, इस हथेली से तस्कीन पाने लगा
इस हथेली के नीचे मेरा लाल करवट सी लेने लगा
उँगलियों से बदन उसका पहचान लो
तुम उसे जान लो
चूमने दो मुझे अपनी ये उँगलियाँ
इनकी हर पोर को चूमने दो मुझे
नाखूनों को लबों से लगा लूँ ज़रा
इस हथेली में मुंह तो छुपा लूँ ज़रा
फूल लाती हुई ये हरी उँगलियाँ
मेरी आंखों से आंसू उबलते हुए
उनसे सींचूंगी मैं
फूल लाती हुई उँगलियों की जड़ें
चूमने दो मुझे
अपने बाल, अपने माथे का चाँद, अपने लब
ये चमकती हुई काली आँखें
मुस्कुराती ये हैरान आँखें
मेरे कांपते होंट, मेरी छलकती हुई आँख को
देख कर कितने हैरान हैं !

तुमको मालूम क्या
तुमने जाने मुझे क्या से क्या कर दिया
मेरे अन्दर अंधेरे का आसेब था
यूँ ही फिरती थी मैं
ज़ीस्त के ज़ायके को तरसती हुई
दिल में आंसू भरे, सब पे हंसती हुई
तुमने अन्दर मेरा इस तरह भर दिया
फूटती है मेरे जिस्म से रोशनी

सब मुक़द्दस किताबें जो नाज़िल हुईं
सब पयम्बर जो अब तक उतारे गए
सब फ़रिश्ते कि हैं बादलों से परे
रंग, संगीत, सुर, फूल, कलियाँ, शजर
सुब्ह दम पेड़ की झूलती डालियाँ
उनके मफहूम जो भी बताये गए
ख़ाक पर बसने वाले बशर को
मसर्रत के जितने भी नग़मे सुनाये गए
सब रिशी, सब मुनी, अम्बिया, औलिया
खैर के देवता, हुस्न, नेकी, खुदा
आज सब पर मुझे एतबार आ गया
एतबार आ गया .
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