जिसने अपयश की चिन्ता कभी की।
प्यार में उसने सौदागरी की॥
जबसे उसने प्रशंसा मेरी की।
कोई सीमा नहीं बेकली की॥
घर मेरा धूएं से भर गया है,
गीली हैं लकड़ियाँ ज़िन्दगी की॥
कुछ भी आपस में बँटता नहीं है,
सरहदें हैं कहाँ दोस्ती की॥
कुछ भी शायद नहीं मेरे वश में,
अब मैं सुनता हूं केवल उसी की॥
राजनेता कभी बन न पाया,
चापलूसी में जिसने कमी की॥
हर ख़ुशी परकीया नायिका है,
हो न पायी कभी भी किसी की॥
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5 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया रही!
और बेहतरीन शरों की तुलना में 'मतला' नहीं जम रहा. यह शेर हद उम्दा है...
घर मेरा धूएं से भर गया है,
गीली हैं लकड़ियाँ ज़िन्दगी की॥
...वाह!
घर मेरा धूएं से भर गया है,
गीली हैं लकड़ियाँ ज़िन्दगी की॥
कुछ भी आपस में बँटता नहीं है,
सरहदें हैं कहाँ दोस्ती की॥
बहुत ही सुन्दर शेर हैं और आखिरी शेर भी कमाल का है। धन्यवाद्
घर मेरा धूएं से भर गया है,
गीली हैं लकड़ियाँ ज़िन्दगी की॥
कुछ भी आपस में बँटता नहीं है,
सरहदें हैं कहाँ दोस्ती की॥
बहुत ख़ूब !
परकीया -इस लफ़्ज़ के मानी मुझे नहीं मालूम लेहाज़ा शेर समझने में दिक़्क़त हो रही है
behtareen!
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