रविवार, 27 जून 2010

जिसने अपयश की चिन्ता कभी की

जिसने अपयश की चिन्ता कभी की।
प्यार में उसने सौदागरी की॥

जबसे उसने प्रशंसा मेरी की।
कोई सीमा नहीं बेकली की॥

घर मेरा धूएं से भर गया है,
गीली हैं लकड़ियाँ ज़िन्दगी की॥

कुछ भी आपस में बँटता नहीं है,
सरहदें हैं कहाँ दोस्ती की॥

कुछ भी शायद नहीं मेरे वश में,
अब मैं सुनता हूं केवल उसी की॥

राजनेता कभी बन न पाया,
चापलूसी में जिसने कमी की॥

हर ख़ुशी परकीया नायिका है,
हो न पायी कभी भी किसी की॥
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5 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया रही!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

और बेहतरीन शरों की तुलना में 'मतला' नहीं जम रहा. यह शेर हद उम्दा है...

घर मेरा धूएं से भर गया है,
गीली हैं लकड़ियाँ ज़िन्दगी की॥
...वाह!

निर्मला कपिला ने कहा…

घर मेरा धूएं से भर गया है,
गीली हैं लकड़ियाँ ज़िन्दगी की॥

कुछ भी आपस में बँटता नहीं है,
सरहदें हैं कहाँ दोस्ती की॥
बहुत ही सुन्दर शेर हैं और आखिरी शेर भी कमाल का है। धन्यवाद्

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

घर मेरा धूएं से भर गया है,
गीली हैं लकड़ियाँ ज़िन्दगी की॥

कुछ भी आपस में बँटता नहीं है,
सरहदें हैं कहाँ दोस्ती की॥

बहुत ख़ूब !
परकीया -इस लफ़्ज़ के मानी मुझे नहीं मालूम लेहाज़ा शेर समझने में दिक़्क़त हो रही है

anshuja ने कहा…

behtareen!