जिसने अपयश की चिन्ता कभी की।
प्यार में उसने सौदागरी की॥
जबसे उसने प्रशंसा मेरी की।
कोई सीमा नहीं बेकली की॥
घर मेरा धूएं से भर गया है,
गीली हैं लकड़ियाँ ज़िन्दगी की॥
कुछ भी आपस में बँटता नहीं है,
सरहदें हैं कहाँ दोस्ती की॥
कुछ भी शायद नहीं मेरे वश में,
अब मैं सुनता हूं केवल उसी की॥
राजनेता कभी बन न पाया,
चापलूसी में जिसने कमी की॥
हर ख़ुशी परकीया नायिका है,
हो न पायी कभी भी किसी की॥
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