मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

पाँव में गरदिश है रुकना है मुहाल्

पाँव में गरदिश है रुकना है मुहाल्।
पर सफ़र हो जाये पूरा है मुहाल॥
हो चुका है दिल से वो बेहद क़रीब,
खींचना अब उसका ख़ाका है मुहाल्॥
रहगुज़ारे-इश्क़ पर जब चल पड़े,
रहगुज़ारे रस्मे-दुनिया है मुहाल्॥
उसका जलवा गर तसव्वुर में न हो,
शेर-गोई का करिश्मा है मुहाल्॥
ज़द में तूफ़ाँ की सफ़ीने हैं सभी,
पार कर पाना ये दरिया है मुहाल्॥
धूप अब ऊँचे मकानों में है क़ैद,
मेरे घर में आना-जाना है मुहाल्॥
क़र्ज़ लेकर मुझ से वो करता है ऐश,
मैं करूँ कोई तक़ाज़ा है मुहाल्॥
ख़ुद मिलूँ तो काम कुछ बनता नहीं,
ढूँढ लूँ मैं कोई ज़रिआ है मुहाल्॥
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2 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

उसका जलवा गर तसव्वुर में न हो,
शेर-गोई का करिश्मा है मुहाल्
पूरी गज़ल ही लाजवाब है एक ही शेर कोट कर रही हूँ इसका मतलव ये नही की बाकी शेर इस से कम हैं बहुत अच्छी लगी गज़ल धन्यवाद। मैने उर्दू शब्द कोश मंगवाया है मगर आपकी गज़लों से उन शब्दों का प्रयोग सीखूँगी। कल ही किसी ने मुझे ये शब्द को श भेजा है। धन्यवाद

रानीविशाल ने कहा…

Waah ! kya baat hai behad khubsurat gazal pad kar bahut accha laga..aapko bahut bahut dhanyawaad!
Sadar
http://kavyamanjusha.blogspot.com/