सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

दर्द गहरा हुआ, क़हक़हे बढ गये

दर्द गहरा हुआ, क़हक़हे बढ गये।
खोखलेपन के सब सिल्सिले बढ गये॥
इश्क़ की ये ज़मीनी रविश देखिए,
हुस्न बेज़ार है, मन चले बढ गये॥
जब घरों में भी बाज़ार दाख़िल हुआ,
नफ़अ नुक़्सान के मामले बढ गये ॥
मिलते अब भी हैं अहबाब अख़लाक़ से,
हाँ बस इतना हुआ फ़ासले बढ गये॥
लोग कहते हैं तहज़ीब का मरसिया,
पर सुनाएं किसे, सरफिरे बढ गये॥
हो गया ऐसा तब्दील तरज़े-सुख़न,
शायरी के लिए हौसले बढ गये॥
रफ़्ता-रफ़्ता ये दुनिया सिमटती गयी,
इल्मो-इदराक के दायरे बढ गये॥
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2 टिप्‍पणियां:

Mithilesh dubey ने कहा…

पूरी रचना ही जबरदस्त लगी लेकिन ये लाईंन दिक को छू गयीं

इश्क़ की ये ज़मीनी रविश देखिए,
हुस्न बेज़ार है, मन चले बढ गये॥

कविता रावत ने कहा…

bilkul sahi kaha aapne.... gajal ki ye do pankiyan bahut achhi lagi..

दर्द गहरा हुआ, क़हक़हे बढ गये।
खोखलेपन के सब सिल्सिले बढ गये॥
Bahut shubhkamnayne.