बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

लुत्फ़े-दर्दे-लादवा रानाइए-असरारे-ज़ीस्त्

लुत्फ़े-दर्दे-लादवा रानाइए-असरारे-ज़ीस्त्।
इश्क़ की जौलानियाँ हैं पर्तवे- पिन्दारे-ज़ीस्त्॥

शर्हे-मुश्ते-ख़ाक में सह्रा-नवर्दी का है शोर,
कुछ नहीं जोशे-जुनूं जुज़ मत्लए-अनवारे-ज़ीस्त्॥

बे सरोसामानियाँ जब तक रहेंगी हम-सफ़र,
दम-ब-दम होती रहेगी मौत से तकरारे-ज़ीस्त्॥

ख़्वाहिशों की कश्मकश में तय किये कितने पड़ाव,
मुख़्तसर है यूं तो कहने को बहोत मक़दारे-ज़ीस्त्॥

ख़ाके-ख़िर्मन बर्क़ से क्या मांगती नेमुलबदल,
आशनाए-उल्फ़ते-हस्ती न था गुल्ज़ारे-ज़ीस्त्॥

ज़िन्दगी से तोड़ कर रिश्ता जुनूँ के जोश में,
हम लुटा बैठे मताए-ताक़ते-दीदारे-ज़ीस्त्॥

किस भरोसे पर उठाएं ग़म की साँसों का ये बोझ,
इक तरफ़ जीने की ख़्वाहिश इक तरफ़ कुहसारे-ज़ीस्त्॥
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लुत्फ़=आनन्द, दर्दे-लादवा=वह पीड़ा जिसकी चिकित्सा सभव न हो, रानाइए-असरारे-ज़ीस्त=जीवन के रहस्यों का सौन्दर्य,जौलानियाँ=स्फूर्ति, पर्तवे-पिन्दारे-ज़ीस्त= जीवन परिकल्पना की छाया, शर्हे-मुश्ते-ख़ाक= एक मुटठी धूल की व्याख्या,सहरानवर्दी=जगल-जगल मारे फिरना, जोशे-जुनूं=दीवनगी का उत्साह, मतलए-अनवारे-ज़ीस्त=जीवनक्षितिज का प्रकाश, बे-सरो-सामनियाँ=अस्तव्यस्तताएं, तकरारे-ज़ीस्त=जीवन का टकराव, ख़ाके-ख़िर्मन=घोंसले की राख, बर्क़=बिजली, नेमुल-बदल=बदले में वैसा ही,आशनाए-उल्फ़ते-हस्ती=अस्तित्त्व के प्रेम से परिचित,मताए-ताक़ते-दीदारे-ज़ीस्त=जीवन से साक्षात्कार की पूंजी, कुह्सारे-ज़ीस्त=पहाड़ रूपी जीवन्।

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