हमें है जाना जहाँ तक ये रास्ते जायें।
इरादे बीच में कैसे जवाब दे जायें।।
घ्ररौन्दे हम तो बनाते रहेंगे साहिल पर ,
बला से मौजें इन्हें अपने साथ ले जायें ॥
उन्हें है आज भी माज़ी की सल्तनत का गुरूर,
किसी तरह तो देमाग़ों से ये नशे जायें ॥
ज़माल उसका वहाँ और भी नुमायाँ है,
बुराई क्या है अगर लोग बुतकदे जायें॥
न ख़ैरियत, न सलामो-दुआ, न ख़न्दालबी,
मिलें जो राह में बिल्कुल कटे-कटे जायें॥
कमाले-शेरो-सुख़न लज़्ज़ते-जमाल में है,
न हो जो हुस्न तो जीने के सब मज़े जायें॥
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