अना की जितनी भी दीवारें थीं वो तोड़ गया ।
मुहब्बतों से हवाओं के रुख़ को मोड़ गया ॥
वो हमसफ़र था मेरा उसपे था भरोसा मुझे,
सफ़र के बीच वो क्यों साथ मेरा छोड़ गया ॥
करिश्मा ये है के हुस्ने सुलूक से अपने,
कलाई ज़ुल्मो तशद्दुद की वो मरोड़ गया ॥
उसी के ज़िक्र से मिलता है हौसला मुझ को,
अजीब तर्ह का रिश्ता वो मुझ से जोड़ गया ॥
हक़ीक़तों की कुदालें थीं उस के हाथों में,
तवह्हुमात के भांडे सभी वो फोड़ गया ॥
मैं ग़फ़्लतों के समन्दर में डूब ही जाता,
भला हो उसका के आकर मुझे झिंजोड़ गया ॥
घड़ा ये मिटटी का नौए बशर की दौलत है,
ये टूट जाये तो समझो कई करोड़ गया ॥
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1 टिप्पणी:
उसी के ज़िक्र से मिलता है हौसला मुझ को,
अजीब तर्ह का रिश्ता वो मुझ से जोड़ गया ॥
मैं ग़फ़्लतों के समन्दर में डूब ही जाता,
भला हो उसका के आकर मुझे झिंजोड़ गया ॥
बहुत खूब. उम्दा शेर.
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