दिल पे करते हैं दमागों पे असर करते हैं.
हम अजब लोग हैं ज़हनों पे असर करते हैं.
बंदिशें हमको किसी हाल गवारा ही नहीं,
हम तो वो लोग हैं दीवार को दर करते हैं.
वक़्त की तेज़-खरामी हमें क्या रोकेगी,
जुम्बिशे-किल्क से सदियों का सफ़र करते हैं.
नक्शे-पा अपना कहीं राह में होता ही नहीं,
सर से करते हैं, मुहिम जब कोई सर करते हैं.
क्या कहें हाल तेरा, ऐ मुतमद्दिन दुनिया,
जानवर भी नहीं करते जो बशर करते हैं.
हमको दुश्मन की भी तकलीफ गवारा न हुई,
लोग अहबाब से भी सरफे-नज़र करते हैं.
मर्क़दों पर तो चरागाँ है शबो-रोज़ मगर,
उम्र कुछ लोग अंधेरों में बसर करते हैं.
***********************
Sunday, February 8, 2009
दिल पे करते हैं दमागों पे असर करते हैं / बाक़र ज़ैदी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
'बन्दिशें हमको…'
'नक्शे पा अपना…'
'मर्क़दों पर तो…'
बहुत, बहुत, बहुत ही ख़ूब!
Post a Comment