मंगलवार, 29 अप्रैल 2008

ग़ज़ल / शैलेश जैदी

ये दिल की धड़कनें होती हैं क्या, क्यों दिल धड़कता है ?
मिला है जब भी वो, बाकायदा क्यों दिल धड़कता है ?
बहुत मासूमियत से उसने पूछा एक दिन मुझसे ,
बताओ मुझको, है क्या माजरा, क्यों दिल धड़कता है ?
मुसीबत में हो कोई, टीस सी क्यों दिल में उठती है,
किसी को देख कर टूटा हुआ, क्यों दिल धड़कता है ?
किया है मैं ने जो अनुबंध उस में कुछ तो ख़तरा है,
मैं तन्हाई में जब हूँ सोचता, क्यों दिल धड़कता है ?
अनावश्यक नहीं होतीं कभी बेचैनियां दिल की,
कहीं निश्चित हुआ कुछ हादसा, क्यों दिल धड़कता है ?
तेरे आने से कुछ राहत तो मैं महसूस करता हूँ,
मगर इतना बता ठंडी हवा, क्यों दिल धड़कता है ?
अभी दुःख-दर्द क्या इस जिंदगी में और आयेंगे,
जो होना था वो सबकुछ हो चुका, क्यों दिल धड़कता है?
कहा मैं ने के अब दिल में कोई हसरत नहीं बाक़ी,
कहा उसने के बतलाओ ज़रा क्यों दिल धड़कता है ?
वो मयखाने में आकर होश खो बैठा है, ये सच है,
मगर क्या राज़ है, साकी ! तेरा क्यों दिल धड़कता है ?

कोई टिप्पणी नहीं: